भारत के स्वतंत्रता सेनानी2021-22

 भारत के स्वतंत्रता सेनानी।


प्रस्तावना:-

                  भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व वाला देश है। जहाँ अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। यह अनेकताओं मे एकता वाला देश है और यही इसकी विशेषता है। भारत एक क्रांतिकारी देश है जो  हमेशा से अपने क्रांतिकारी विचारों पर चलता आया है। 
भारत अपनी आजादी के लिए भी क्रांति लाया। भारत के शोर्य और वीरता का बखान करना यहाँ कुछ ही शब्दों में मुमकिन नहीं है। 
चलिए अब भारत की आजादी के लिए लडने वाले उन स्वतंत्रता सैनानियों की बात करते हैं। जहाँ सबसे पहले नाम आता है, महात्मा गांधी का।

महात्मा गांधी:-
                       इनका जन्म 2 अक्टूबर 1859 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी तथा माता का नाम पुतली बाई था।महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था। इन्हें अंहिसा का पुजारी कहा जाता है।
 इन्हें भारतवासी महात्मा, बापू व राष्ट्रपिता के नाम से याद करते हैं। इन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों के आगे केवल सत्य को पहचाना और इन्हीं आदर्शवादी भावनाओं के कारण इन्होंने हमेशा अपने से ज्यादा देश के बारे में सोचा था। 

हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई और अपनी बातों में जनमत पाने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन किए। उन्होंने अलग-अलग जगहों पर आंदोलन किए और जिते भी। भारत को गुलामी की बेडियों से आजाद कराने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। अंहिसा व सत्य पर चलकर इन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष किया। और भारत को आजादी दिलाई।
इनकी मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई।

भगत सिंह:-

                  इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 मे लायलपुर मे हुआ था। यह एक ऐसे महान् क्रांतिकारी व्यक्ति थे जिनका जोश और आवाज की गुंज सुनकर ब्रिटिश शासन कांप उठता था। इनके हौसले की आज भी मिसाल कायम है। जब भगतसिंह " इनकलाब जिंदाबाद" जयघोष का नारा लगाते थे। तब किसी भी ब्रिटिश अफसर की हिम्मत नहीं होती थी। कि इन्हें रोका जा सके। 
यह हिंदुस्तान के युवाओं के हृदय मे इतनी ज्वाला भरना चाहते थे। ताकि बिना लडाई लडे़ इस ज्वाला मे अंग्रेजी हुकूमत जलकर राख हो जाए। इनके जोश और जज्बे ने भारत मे एक ऐसी क्रांति लाकर रख दी जिसका उद्देश्य केवल भारत पर राज कर रही ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था। 


इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू और माता का नाम विद्दावती था। इनके दादा , पिता और परिवार के लोग
आजादी के लिए किए जा रहे संघर्ष में भाग लेते थे। इन्हीं
पारिवारिक क्रांतिकारी भावनाओं के चलते भगत सिंह
बच्चपन से ही क्रांतिकारी विचारों वाले व्यक्ति बने। 
इन्होंने भारत की आजादी खुशी-खुशी अपनी जान कुर्बान कर दी। यह भारत के पहले युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने 24 वर्ष में शहादत प्राप्त की। 
इनकी मृत्यु 23 मार्च 1931 शहीद हुए।
इनकी शहादत को आज भी पूरा        भारत नमन करता है।

चंद्र शेखर आजाद:-

                            इनका जन्म 23 जुलाई 1906 को भवरा नामक गांव में हुआ। इन्होंने जीते जी अंग्रेजी सरकार की गिरफ्त मे न आने की कसम खाई।
इन्होंने यह कसम इसलिए खाई। क्योंकि इनका मानना था कि जब तक एक क्रांतिकारी के हाथ में पिस्तौल रहती हैं तब तक उसे कोई भी जिंदा नहीं पकडं सकता। आजाद के खून में हमेशा से क्रांतिकारी जज्बा रहा है। 
उन्होंने अपने देश के प्रति कर्तव्य  के आगे सब कुछ कुर्बान कर दिया, अपना परिवार, अपना जीवन , अपने सपने सब कुछ देश के प्रति समर्पित कर दिया।

जितना जोश आजाद मे था। उतना ही उनके पिता सीताराम तिवारी जिन्होंने भारत के नौजवान मे क्रांति की आग को जलाने वाले मात्र 14 वर्ष की उम्र में न्यायधीश खरेघाट के द्धारा पूछे गये प्रशनों का निर्भिकता, सहजता व कठोरता से जवाब दिया।
इनकी माता का नाम जगरानी देवी था। आजाद 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए अल्फ्रेड पार्क शहर में अपनी कसम को निभाते हुए अंत तक अंग्रेज जिंदा नहीं पकड पाए। देश को आजाद कराने के लिए इनकी इस कुर्बानी को इतिहास के अमर पन्नों में लिखा गया है।
भारत इन क्रांतिकारीयों को कभी नहीं भुला पाएगा।

सुखदेव:-

             यह भगतसिंह के बच्चपन के दोस्त थे। इन दोनों ने भारत को आजाद करवाने के लिए एक साथ ब्रिटिश शासन से लडे़। सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 मे पंजाब राज्य के लुधियाना मे हुआ था। इनकी माता का नाम रल्ली देवी तथा पिता का नाम मथुरादास थापर था। सुखदेव थापर के पिता की मृत्यु इनके जन्म के कुछ ही समय पश्चात हो गई। 
इनके पिता के जाने के बाद सुखदेव के ताऊ अचिन्तराम ने ही पालन-पोषण किया था।
सुखदेव, भगतसिंह के सभी कार्यों में सहयोगी रहे साथ ही साथ इन दोनों ने देश को आजाद कराने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुखदेव, भगत सिंह के साथ आखिरी साँस तक लडते रहे और 23 मार्च को भगत सिंह व राजगुरु के साथ अपनी आखिरी साँस ली।

भारत के लिए शहीद हुए इन तीनों जवानों को सत्-सत् नमन करता है, यह भारत।


लाला लाजपत राय:-
                             भारत के एक और स्वतंत्रता सैनानी जब भारत अंग्रेजों की गुलामी की बेडियों मे बंदने के बाद इन्होंने घोषणा की। कहा "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मे लेकर रहूँगा।
लाला लाजपतराय का जन्म धुडीके, फीरोजाबाद(पंजाब) मे 28 जनवरी 1865 को हुआ। इनके पिता का नाम लाला राधा कृष्ण अग्रवाल था जो की एक अध्यापक थे। इनकी माता का नाम गुलाब देवी था। यह काँग्रेस के गर्म दल के समर्थक थे तथा अपना सारा जीवन राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
इनके उग्र विचारों से समाज का हर वर्ग प्रभावित था। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें कई  महिनों तक माँडले जेल में डाल दिया साथ ही अंग्रेजी शासन ने इनके ऊपर देशद्रोह का आरोप भी लगा दिया। एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए लाठीचार्ज किया गया जिसमें यह गम्भीर रुप से घायल हो गए। अंततः 17 नवंबर 1920 को यह शहीद हो गए।

 सुभाषचंद्र बोस:-
                         इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक (उडीसा) मे हुआ। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया। ज्यादातर भारतीय इन्हें नेताजी के नाम से पुकारते हैं। इन्होंने राष्ट्र की सेवा के लिए अपनी नौकरी आई.सी.एस  से त्यागपत्र दे दिया।
अंग्रेजी हुकूमत ने इनके विचारों को देखते हुए इन्हें कई बार जेल मे डाला लेकिन ब्रिटिश शासन इनके हौसले को नहीं तोड़ पाई।
जब नेताजी को यह अनुभव हुआ कि भारत में रहते आजाद होना आसान नहीं है। तो यह जापान चले गए वहाँ आजाद हिंद फौज का गठन किया। यदि उस समय द्धितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका, जापान को दो शहरों में विभजित कर परमाणु बम नहीं फैंकता तो शायद सन् 1942 मे ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारत को आजाद करवा देते।

हमारे भारत देश ने कभी भी अंग्रेजों की गुलामी को स्वीकार नहीं किया। क्योंकि इन महान् क्रांतिकारीयों ने इसे अपने खून से सिंचा था।

निष्कर्ष:-

              भारत ने तकरीबन 200 वर्षो तक अंग्रेजों की गुलामी सही पर भारत अपने क्रांतिकारी विचारों पर खरा उतरा और अंतत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। भारत की गिनती आज भी विकासशील देशों में होती है। लेकिन भारत आज विश्व मे अपनी छवि धीरे- धीरे बदल रहा है। आजाद होने के बाद भारत आज हर क्षेत्र मे प्रगति कर रहा है।


भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार सब बदल रहा है और भारत सब कुछ भुलाकर आगे बढ़ रहा है। लेकिन भारत के इतिहास में जो ब्रिटिश शासन ने इस सोने की चिडिय़ा को जो जख्म दिए है। यह भारत इन जख्मों को कभी भुला नहीं पायेगा।

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