Class 10th chapter 3. धातु एवं अधातु NCERT solution 2021-22

 Chapter 3 धातु एवं अधातु ।


Class 10th के NCERT Book के नोट्स वह पाठगत प्रश्नों के उत्तर वह इस पाठ से जुड़े सभी प्रश्न उत्तर को विस्तार पूर्वक बताया गया है। आपसे जुड़े हर सवाल का जवाब हम देंगे। 

NOTES - 

धातु:-

वे तत्व जो ऑक्सीजन से अभिक्रिया कर अथवा जिनका वायु की उपस्थित में दहन करने से उनके ऑक्साइडों का निर्माण होता है, धातु कहलाते हैं।

जैसे कॉपर, एल्युमिनियम, सिल्वर,सोडियम, पोटेशियम, जिंक, मेंगनीज आदि।

धातुओं में बहुत अधिक संख्या में मुक्त इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं तथा बाह्य विद्युत् क्षेत्र की उपस्थिति में विद्युत् धारा का चालन करती है। धातुएं सामान्यतः ठोस होती हैं।

अधातु:-

वे तत्व जो कमरे के ताप पर ठोस अथवा गैसीय अवस्था में पाये जाते हैं तथा विद्युत् धारा का चालन नहीं करते हैं, अधातु कहलाते हैं।

जैसे कार्बन, सल्फर, आयोडीन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि।

धातु एवं अधातुओं का वर्गीकरण

धातु एवं अधातु को उनके गुणधर्मों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

(A) धातुओं के भौतिक गुणधर्म

(B) अधातुओं के भौतिक गुण

(C) धातु एवं अधातुओं की आपस में क्रिया

धातुओं के भौतिक गुणधर्म

1. धात्विक चमक

धातुओं की सतह चमकदार होती है, धातुओं के इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं।

2. आघातवर्ध्यता

धातुओं को पीटकर पतली चादर बनाई जा सकती है, धातुओं के इस गुणधर्म को आघातवर्ध्यता कहते हैं।

3. तन्यता

धातुओं को पतले तार के रूप में खींचने की क्षमता को तन्यता कहते हैं। सोना सबसे अधिक तन्य धातु है। एक ग्राम सोने को खींच कर दो किलोमीटर लंबा तार बनाया जा सकता है।

सभी धातुएं कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होती हैं। इसलिए इनके गलनांक, क्वथनांक भी उच्च होता है। 

अपवाद

गैलियम तथा सीजियम धातु होते हुए भी इनका गलनांक बहुत कम होता है।

मर्करी धातु होते हुए भी कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पायी जाती है।

4. चालकता

 धातुएँ उष्मा एवं विद्युत की सुचालक होती हैं। तथा इनका गलनांक क्वथनांक भी उच्च होता है। इसलिए इनका उपयोग बर्तन बनाने के लिए भी किया जाता है। 

अपवाद स्वरूप मर्करी एवं लेड ऊष्मा के कुचालक होते हैं।

5. ध्वानिक

जब धातुएँ किसी कठोर सतह से टकराती है तो ध्वनि उत्पन्न करती हैं, धातुओं के इस गुणधर्म को ध्वानिक कहते हैं।

घरों में आने वाले विद्युत तार पर पोलीवाइनिल क्लोराइड(pvc) अथवा रबड़ जैसी सामग्री की परत चढ़ाई जाती क्यों है?

हम जानते है की विद्युत् तार धातु का बना होता है। विद्युत् प्रवाह के दैरान इसे छूने से हमें खतरा हो जाता है। अत: सुरक्षा के लिए तार पर विद्युत् रोधी पदार्थ (जैसे PVC  अथवा रबड़) की परत चढाई जाती है। जिससे विद्युत् हमारे शरीर से नहीं गुजरती है

अधातुओं के भौतिक गुण

अधातुओं के गुणधर्म धातुओं से भिन्न होते हैं।

1. ये कमरे के ताप पर ठोस अथवा गैस अवस्था में पयी जाती हैं। तथा इनका गलनांक क्वथनांक धातुओं की तुलना में कम होता है।

2. अधातुएँ ताप(उष्मा) एवं विद्युत् की कुचालक होती हैं।

कार्बन एक ऐसी अधातु है जो विभिन्‍न रूपों में विद्यमान रहती है कार्बन के प्रत्येक रूप को अपररूप कहते हैं। हीरा कार्बन का एक अपररूप है यह प्रकृति में पाया जाने वाला सबसे अधिक कठोर पदार्थ है। जिसका गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होता है।

ग्रेफाइट भी कार्बन का एक अपररूप है जो अधातु होते हुए भी विद्युत् का सुचालक होता है।

3. अधातुओं में चमक नहीं पायी जाती। अपवाद स्वरूप आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीली होती है।

हमने देखा कि कुछ गुण जो धातु एवं अधातु दोनों में पाए जाते हैं जैसे धातुएँ चमकीली होती हैं तथा अधातु जैसे आयोडीन भी चमकीली होती है अतः हम धातु एवं अधातुओं को उनके भौतिक गुणधर्मों के आधार पर अधिक स्पष्टता से वर्गीकृत नहीं कर सकते।

इन्हें अधिक स्पष्टता से वर्गीकृत करने के लिए आइए इनके रासायनिक गुण धर्मों का सहारा लिया जाता है|

धातुओं के रासायनिक गुणधर्म

1. धातुओं का वायु की उपस्थिति में दहन

धातुओं को वायु की उपस्थिति में जलाने से संगत धातु ऑक्साइडों का निर्माण होता है जब मैग्नीशियम को वायु की उपस्थिति में जलाया जाता है तो उसका श्वेत ज्वाला के साथ दहन होता है। लगभग सभी धातुएँ इसी प्रकार क्रिया करती हैं। तथा धातु ऑक्साइड का निर्माण करती है।

धातु + ऑक्सीजन --> धातु ऑक्साइड

जैसे कॉपर को वायु की उपस्थिति में जलाया जाता है तो यह ऑक्सीजन से जुड़कर काले रंग का कॉपर ऑक्साइड बनाता है। वास्तव में कॉपर का दहन नहीं होता लेकिन इस पर कॉपर (॥) ऑक्साइड की परत चढ़ने से इसका रंग काला हो जाता है।

धातु ऑक्साइड

इसी प्रकार एल्युमीनियम से एल्युमीनियम ऑक्साइड प्राप्त होता है।

धातु ऑक्साइडों को जल में घोलने पर जलीय विलयन में कुछ धातु ऑक्साइड अम्लीय गुण प्रदर्शित करते हैं तथा कुछ क्षारीय गुण प्रदर्शित करते हैं।

एल्युमीनियम ऑक्साइड तथा जिंक ऑक्साइड जैसे कुछ धातु ऑक्साइड अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों प्रकार के गुण प्रदर्शित करते हैं।

उभयधर्मी आक्साइड

वे धातु ऑक्साइड जो अम्ल एवं क्षार दोनों से क्रिया कर लवण तथा जल बनाते हैं, उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते हैं।

जैसे

एलुमिनियम ऑक्साइड की अम्ल एवं क्षारक साथ अभिक्रिया

जल में घुलना

कुछ धातु ऑक्साइड जल में नहीं घुलते लेकिन कुछ धातु ऑक्साइड जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं।

एनोडीकरण

एनोडीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एल्युमीनियम पर ऑक्साइड की मोटी परत बन जाती है जो एल्युमीनियम को संक्षारण अथवा नष्ट होने से बचाती है। एल्युमीनियम पर ऑक्साइड की मोटी परत बनाने के लिए एल्युमीनियम का एनोड़ बना कर विद्युत अपघटन कराया जाता है। इस प्रक्रिया में एनोड पर उत्सर्जित ऑक्सीजन गैस एल्युमीनियम से क्रिया कर ऑक्साइड की मोटी परत का निर्माण करती है। इस एलुमिनियम ऑक्साइड क रंग करके मनचाही वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं।


धातुओं की जल के साथ अभिक्रिया

कुछ धातुएँ जल के साथ बिल्कुल भी अभिक्रिया नहीं करती हैं।

जैसे

पैलेडियम(सीसा), चांदी(सिल्वर), सोना(औरम) तथा कॉपर आदि।

कुछ धातु जल के साथ अभिक्रिया करके धातु ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन गैस का निर्माण करती है। जो धातु ऑक्साइड जल में घुलनशील होते हैं वे जल में घुलकर धातु हाइड्रोक्साइड का निर्माण करते हैं।

धातु + जल --> धातु ऑक्साइड + हाइड्रोजन धातु ऑक्साइड + जल --> धातु हाइड्रोक्साइड

धातुओं की जल के साथ अभिक्रिया

सोडियम तथा पोटैशियम जैसी धातुएँ ठंडे जल के साथ तेजी से क्रिया करती हैं। इस प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊष्मा का उत्सर्जन होता है। अर्थात यह अभिक्रिया अत्यधिक उष्माक्षेपी होती है इस उष्मा के कारण हाइड्रोजन तत्काल एवं प्रज्वलित हो जाता है। अथवा जल जाता है।

जल के साथ कैल्शियम की अभिक्रिया

जल के साथ कैल्शियम की अभिक्रिया थोड़ी धीमी होती है। लेकिन यह भी उष्माक्षेपी अभिक्रिया होती है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न उष्मीय ऊर्जा हाइड्रोजन को जलाने के लिए पर्याप्त नहीं होती है।

अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले कैल्शियम की सतह पर चिपक जाते हैं। हाइड्रोजन गैस जल की अपेक्षा हल्की होने के कारण कैल्शियम को जल की सतह पर तेरा देती है।

मैग्नीशियम शीतल जल के साथ अभिक्रिया नहीं करता है। लेकिन गर्म जल के साथ क्रिया करके मैग्नेशियम हाइड्रोक्साइड तथा हाइड्रोजन गैस का निर्माण करती है।

हाइड्रोजन गैस के बुलबुले मैग्नीशियम की सतह पर चिपक जाने के कारण यह भी जल की सतह पर तैरने लगती है।

एल्यूमिनियम, आयरन तथा जिंक जैसी धातुएँ केवल भाप के साथ अभिक्रिया करती हैं। तथा धातु ऑक्साइड व हाइड्रोजन गैस का निर्माण करती है।


धातुओं की अम्लों के साथ अभिक्रिया

धातुएँ अम्लों के साथ अभिक्रिया करके संगत लवण तथा हाइड्रोजन गैस का निर्माण करती है।

जब धातु नाइट्रिक अम्ल(HNO3) के साथ अभिक्रिया करती है। तब हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित नहीं होती है। क्योंकि नाइट्रिक अम्ल एक प्रबल ऑक्सीकारक होता है जो उत्पन्न हाइड्रोजन को ऑक्सीकृत करके अथवा हाइड्रोजन में ऑक्सीजन जोड़कर जल में परिवर्तित कर देता है। एवं स्वयं नाइट्रोजन के किसी ऑक्साइड में परिविर्तित हो जाता है। लेकिन मैग्नीशियम(Mg) एवं मैंगनीज(Mn), तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित करते हैं।

- कॉपर, तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ अभिक्रिया नहीं करता है। क्योंकि कॉपर की क्रियाशीलता तनु HCl के प्रति कम होती है।

- एक्वारेजिया 

जब सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं सान्द्र नाइट्रिक अम्ल को 3:1 के अनुपात में मिलाया जाता है तो प्राप्त विलयन को एक्वारेजिया कहा जाता है। यह एक भभकता हुआ द्रव होता है। तथा प्रबल संक्षारक भी होता है। जो गोल्ड को गला सकता है। इनमें से किसी एक में यह क्षमता नहीं होती है।


धातुओं की धातु लवणों के विलयन के साथ अभिक्रिया

अधिक क्रियाशील धातु कम क्रियाशील धातु को उसके लवण से विस्थापित कर देती है।

जैसे

धातु (A) + (B) का लवण विलयन --> (A) का लवण विलयन + (B) धातु

अभिक्रिया से स्पष्ट है की धातु A धातु B की तुलना में अधिक क्रियाशील है। अत: B धातु को उसके लवण से अलग कर स्वयं जुड़ जाती है।

सक्रियता श्रेणी: 

सक्रियता श्रेणी वह श्रेणी है जिसमें धातुओं को उनकी क्रियाशीलता के अवरोही क्रम मे व्यवस्थित किया जाता है।

पोटैसियम(K)

सोडियम(Na)

कैल्शियम(Ca)

मैग्नीशियम(Mg)

एल्यूमिनियम(Al)

जिंक(Zn)

आयरन(Fe)

लेड(Pb)

हाइड्रोजन(H)

कॉपर(Cu)

मर्करी(Hg)

सिल्वर(Ag)

गोल्ड(Au)

उपरोक्त तत्वों में ऊपर से नीचे आने पर क्रियाशीलता में कमी आती है।

पोटैसियम की क्रियाशीलता सबसे अधिक व गोल्ड की क्रियाशीलता सबसे कम होती है।

आयरन के साथ तनु H2SO4 की रासायनिक अभिक्रिया

Fe(s) + H2SO4(l) --> FeSO4(l) + H2(g)

धातु एवं अधातुओं की आपस में क्रिया

संयोजकता उपकोष K,L,M तथा N होते हैं जिनमें इलेक्ट्रान क्रमशः 2,8,8 तथा 8 भरे जाते हैं। धातु एवं अधातुओं का संयोजकता कोष पूर्ण भरा हुआ नहीं रहता। अपने संयोजकता कोष में आठ इलेक्ट्रान पूर्ण करने के लिए धातुएँ इलेक्ट्रान त्यागकर धनायनों का निर्माण करती हैं। तथा अधातुएँ इलेक्ट्रान ग्रहण कर ऋणायनों का निर्माण करती हैं। धनायन तथा ऋणायन विपरीत प्रकृति के आवेश होने के कारण धातु एवं अधातुओं में आकर्षण होता है तथा ये आपस में जुड़कर आयनिक यौगिक का निर्माण करती हैं।

जैसे

सोडियम क्लोराइड(NaCl) एक आयनिक यौगिक जिसमें सोडियम धातु व क्लोरीन अधातु है।

NaCl का निर्माण

सोडियम का परमाणु क्रमांक 11 होता है। किसी तत्व का परमाणु क्रमांक उस तत्व में प्रोटॉनो की संख्या को व्यक्त करता है। किसी तत्व में इलेक्ट्रानों की संख्या लगभग प्रोटॉनों के बराबर होती है। तथा एक इलेक्ट्रान एक प्रोटॉन से क्रिया कर उदासीन हो जाते हैं। अत: सोडियम के K उपकोष में 2 इलेक्ट्रान, L उपकोष में 8 इलेक्ट्रान तथा M उपकोष में एक इलेक्ट्रान होता है। यह एक इलेक्ट्रान त्यागकर अपना अष्टक(2,8) पूरा कर लेता है। जिससे इसमें इलेक्ट्रानों की संख्या घटकर 10 रह जाती है इस स्थिति में एक धनायन(प्रोटॉन) (Na+) की अधिकता हो जाती है।

क्लोरीन का परमाणु क्रमांक 17 होता है। अत: इसके K,L,M उपकोशों में इलेक्ट्रोनों की संख्या क्रमशः 2,8,7 होती है। यह एक इलेक्ट्रान ग्रहण कर अपना अष्टक(2,8,8) पूरा कर लेता है। अत: इसमें एक ऋणआयन(Cl-) की वृद्धि हो जाती है।

सोडियम में एक धनायन की अधिकता एवं क्लोरीन में एक ऋणआयन की अधिकता होने के कारण ये आकर्षित होते हैं तथा आपस में जुड़कर आयनिक यौगिक सोडियम क्लोराइड का निर्माण करते हैं।

आयनिक यौगिकों के गुणधर्म

1. आयनिक यौगिकों में धन तथा ऋण आयनों के मध्य मजबूत आकर्षण बल पाया जाता है, इसलिए ये ठोस, कठोर एवं भंगुर प्रकृति के होते हैं।

2. आयनिक यौगिकों के गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं।

3. आयनिक यौगिक विलयन अवस्था में विद्युत् की चालकता प्रदर्शित करते हैं। क्योंकि विलयन अवस्था में आयन गति करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। जो विद्युत् की चालकता प्रदर्शित करते हैं।

4. आयनिक यौगिक सामान्यत: जल में घुलनशील होते हैं, जबकि केरोसिन, पेट्रोल आदि जैसे विलायकों नहीं घुलते हैं।

धातुओं को प्राप्त करना

- पृथ्वी की भू-पर्पटी में पाये जाने वाले तत्वों अथवा उनके यौगिकों को खनिज कहते हैं।

 - वे खनिज जिनसे धातु को प्राप्त करना आसान व आर्थिक रूप से लाभकारी होता अयस्क कहलाते हैं।

धातुओं का निष्कर्षण

अयस्क से शुद्ध धातु प्राप्त करने कि प्रक्रिया धातुओं का निष्कर्षण कहलाती है।

सक्रियता श्रेणी, एक ऐसी श्रेणी है जिसमें धातुओं को उनकी क्रियाशीलता के घटते क्रम में व्यवस्थित किया गया है।

(अधिक क्रियाशील धातुएं: विद्युत् अपघटन द्वारा शोधन)

पोटेशियम 

सोडियम   

कैल्शियम  

मैंग्नीशियम

एल्युमिनियम

(मध्यम अभिक्रियाशील धातुएं: कार्बन के उपयोग से अपचयन द्वारा शोधन)

जिंक  

आयरन

पेलेडियम 

कॉपर

 (बिल्कुल कम क्रियाशील धातुएं: प्राकृतिक रूप से शुद्ध अवस्था में उपस्थिति)

सिल्वर

गोल्ड 

प्लैटिनम

अयस्कों का समृद्धीकरण

अयस्कों में रेत, मिट्टी आदि अशुद्धियों के कण भी चिपके होते हैं, इन अशुद्धियों को गेंग कहते हैं।

अयस्कों से गेंग को हटाना ही अयस्कों का समृद्धीकरण कहलाता है।

सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण

हम जानते हैं की सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएं अनभिक्रिय होती हैं। इन धातुओं के ऑक्साइडों को केवल गर्म करने पर ही शुद्ध धातु को प्राप्त किया जा सकता है।

जैसे सिनाबार (HgS), मर्करी का सलफाइड अयस्क है। इसे वायु की उपस्थिति में गर्म करने पर ऑक्साइड अयस्क में बदल जाता है  और अधिक गर्म करने पर मर्करी में अपचयित हो जाता है।

इसी प्रकार Cu2S अयस्क को गर्म करके कॉपर प्राप्त कर सकते हैं।

सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण

इन धातुओं की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। ये धातुएं प्रकृति में सामान्यत: सल्फाइड तथा कार्बोनेट अयस्कों के रूप में पायी जाती हैं।

सल्फाइड तथा कार्बोनेट अयस्कों से शुद्ध धातु प्राप्त करने की तुलना में इनके ऑक्साइड अयस्कों से शुद्ध धातु प्राप्त करना अधिक आसान होता है। अत: शुद्ध धातु प्राप्त करने के लिए पहले सल्फाइड तथा कार्बोनेट अयस्कों को ऑक्साइड अयस्कों में परिवर्तित किया जाता है। 

जिसकी निम्न दो विधियाँ हैं-

(a) भर्जन

सल्फाइड अयस्कों को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर ये ऑक्साइड अयस्कों में परिवर्तित हो जाते हैं, इस प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं।

जैसे

जिंक सल्फाइड का भर्जनीकरण

तापन

2ZnS(s)+3O2(g)-->2ZnO(s)+2SO2(g)

(b) निस्तापन

कार्बोनेट अयस्कों को सीमित वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर ये ऑक्साइड अयस्कों में परिवर्तित हो जाते है, इस प्रक्रिया को निस्तापन कहते हैं।

जैसे

जिंक कार्बोनेट का निस्तापनीकरण

तापन

ZnCO3(s) --> ZnCO3(s)+CO2(g)

इसके बाद उपयुक्त अपचायक जैसे कार्बन के द्वारा इनका अपचयन कराके शुद्ध धातु प्राप्त कर ली जाती है।

अपचयन अभिक्रिया

तापन

ZnO(s)+C(s)-->Zn(s)+CO(g)(कार्बनमोनोऑक्साइड गैस)

सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण

ये धातुएँ अत्यधिक अभिक्रियाशील होती है। इनकी क्रियाशीलता कार्बन से अधिक होने के कारण ये कार्बन द्वारा अपचयित नहीं होती हैं।

इनको इनके गलित क्लोराइडों से विद्युत् अपघटन द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस प्रक्रिया में कैथोड़ पर धातुएँ निक्षेपित होती हैं। तथा एनोड़ पर क्लोरीन गैस मुक्त हो जाती है।


NCERT QUESTION

पाठगत प्रश्न उत्तर:-

1. सोडियम तथा पोटैशियम धातुओं को क्षार धातु क्यों कहा जाता है?

अधिकतर धातु ऑक्साइड जल में घुलकर अम्लीय गुण प्रदर्शित करते हैं जबकि सोडियम तथा पोटैशियम धातुओं के ऑक्साइड जल में घुलकर क्षारीय गुण प्रदर्शित करते हैं अत: इन्हें क्षार धातु कहा जाता है।

2. सोडियम तथा पोटेशियम को केरोसिन के तेल में डूबा कर क्यों रखा जाता है?

सोडियम तथा पोटैशियम इतनी अधिक क्रियाशील धातु हैं कि इनको खुले में रखने पर ये ऑक्सीजन से क्रिया करके आग पकड़ लेती है अतः इनकी आकस्मिक आग से सुरक्षा के लिए इन्हें केरोसिन के तेल में डुबोकर रखा जाता है।

3. क्या कारण है कि मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, पैलेडियम तथा जिंक जैसी धातुओं का ऑक्सीकरण अथवा उपचयन नहीं होता?

मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, पैलेडियम तथा जिंक जैसी धातुओं पर ऑक्साइड की रक्षित परत चढ़ जाती है जो ऑक्सीकरण से सुरक्षा प्रदान करती है अत: इनका ऑक्सीकरण अथवा उपचयन नहीं होता।

4. आयनिक यौगिकों का गलनांक उच्च होता है क्यों?

हम जानते हैं की आयनिक यौगिकों में मजबूत आयनिक बन्ध होते हैं। अत: इन्हें तोड़ने के लिए अधिक उष्मा की आवश्यकता होती है इसलिए इनके गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं।

5. धातुओं को उनके अयस्कों से प्राप्त करना किस प्रक्रम के अन्तर्गत आता है?

अपचयन एवं विस्थापन प्रक्रम के अन्तर्गत।

अपचायक के रूप में कार्बन(कोयला) एवं विस्थापनीकरण के लिए ऑक्सीजन से अधिक अभिक्रियाशील धातुओं (जैसे:- सोडियम, कैल्शियम,एल्युमिनियम आदि) का उपयोग किया जाता है। क्योंकि ये कम अभिक्रियाशील धातुओं को उनके ऑक्साइड से विस्थापित  कर देते हैं। तथा ऑक्साइड से स्वयं जुड़ जाते है। अौर शुद्ध धातु प्राप्त हो जाती है।

विस्थापन अभिक्रिया:-

3MnO2(s)+4Al(s)-->3Mn(l)+2Al2O3

 (शुद्ध धातु)  (s)+उष्मा 

ये अभिक्रियाएँ अत्यधिक उष्माक्षेपी होती हैं। उष्मा अधिक मात्रा में उत्सर्जित होने के कारण धातुएँ पिघली हुइ अवस्था में प्राप्त होती हैं।

आयरन(|||)ऑक्साइड के साथ एल्युमिनियम की अभिक्रिया भी अत्यन्त उष्माक्षेपी होती है। इस अभिक्रिया का उपयोग रेल की पटरी, मशीन के पुर्जों की दरारों को जोड़ने के लिए किया जाता है, इस अभिक्रिया को " थर्मिट अभिक्रिया " कहते हैं।

Fe2O3(s)+2Al(s)-->2Fe(l)+Al2O3(s)+

 उष्मा

6. कौनसी धातु आसानी से संक्षारित नहीं होती है?

सोना(ओरम)

7. मिश्रातु क्या है?

दो या दो से अधिक धातुओं का समांगी मिश्रण।

8. दो धातुओं के नाम बताइए जो प्रकृति में मुक्त अवस्था में पायी जाती हैं?

सोना, चाँदी, कॉपर आदि।

9. धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करने के लिए किस रासायनिक प्रक्रम का उपयोग किया जाता है?

विद्युत् अपघटनी परिष्करण।

10. गैंग किसे कहते हैं?

अयस्कों में उपस्थित धूल मिट्टी के कणों को गैंग कहते हैं।

11. खनिज एवं अयस्क में अन्तर लिखिए?

भू-पर्पटी से प्राप्त सभी तत्वों को खनिज कहते हैं। जबकी अयस्क भू-पर्पटी से प्राप्त  केवल उन तत्वों को कहा जिनसे धातु को प्राप्त करना सभी अयस्क खनिज हो सकते हैं लेकिन सभी खनिज अयस्क नहीं हो सकते।

12. सलफाइड अयस्क से सीधा शुद्ध धातु प्राप्त नहीं करते पहले उसे ऑक्साइड अयस्क में बदला जाता है क्यों?

सल्फाइड अयस्क की तुलना में ऑक्साइड अयस्क से धातु प्राप्त करना अधिक आसान होता है। इसलिए सल्फाइड अयस्क को पहले ऑक्साइड अयस्क में भर्जन प्रक्रम द्वारा बदला जाता है तथा पुन: धातु प्राप्त. की जाती है।


Extra questions:-

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर:-

1. धातुओं के सामान्य गुणधर्म बताइए|

शुद्ध अवस्था में धातु की सतह चमकदार होती है, इसे धात्विक चमक कहते हैं|

धातुएँ सामान्यत: ठोस व कठोर होती हैं तथा भिन्न-भिन्न धातुओं की कठोरता अलग-अलग होती है|

धातुएँ आघातर्घनीय एवं तन्य होती हैं|

धातुएँ ऊष्मा की सुचालक होती हैं तथा इनका गलनांक भी उच्च होता है अत: इनको खाना पकाने के बर्तन बनाने में प्रयुक्त करते हैं|

धातुएँ सामान्यत: विद्युत की सुचालक होती हैं| अत: बिजली के तारों पर पाँलिवाइलिन क्लोराइड (PVC) या रबड़ की परत चढ़ाते हैं| यह परत विद्युत की कुचलक होती है|

धातुएँ ध्वानिक (सोनोरस) होती हैं अर्थात कठोर सतह से टकराने पर आवाज उत्पन्न करती हैं|

2. अधातुओं के सामान्य गुण क्या हैं? बताइए|

सामान्यत: अधातुएँ कमरे के ताप पर ठोस, द्रव (ब्रोमीन) या गैस हो सकती हैं|

अधातुओं में चमक नहीं होती लेकिन आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीला होता है|

अधातुओं का गलनांक व क्वथनांक धातुओं से कम होता है|

अधातुएँ आघातर्घनीय एवं तन्य नहीं होती|

अधातुएँ विद्युत की कुचालक होती होती हैं| अपवाद-ग्रेफाईट 

अधातुएँ सोनोरस नहीं होती|

3. एलुमिनियम के किसी एक अयस्क का नाम तथा सूत्र बताइए|

एलुमिनियम का अयस्क-  बाँक्साइट,  सूत्र-Al2O3.2H2O

4. कोई धातुएँ बताइए जिनसे सिक्के बनाए जाते हैं|

काँपर (Cu), चाँदी (Ag) सोना (Au)

5. अयस्क के सान्द्रण की विधियाँ बताइए|

गुरुत्वीय पृथक्करण विधि, झाग प्लवन विधि, चुम्बकीय पृथक्करण विधि, रासायनिक विधि

6.भर्जन किसे कहते हैं?

सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह आँक्साइड में परिवर्तित हो जाता है| यह प्रक्रिया भर्जन कहलाती है|

7. टर्न अधातु का नाम बताइए|

ब्रोमीन

8. ताँबा और जस्ते की मिश्रधातु का नाम क्या है?

पीतल

9. आँक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अधातुएँ कैसा आँक्साइड बनाती हैं? कोई दो उदाहरण बताइए|

आँक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अधातुएँ अम्लीय तथा उदासीन आँक्साइड बनाती हैं| उदाहरण-(i)S + O2 = SO2

 (ii)C + O2 = CO2

10. सोल्डर नामक मिश्रधातु के कौन-कौनसे अवयव है?

सोल्डर मिश्रधातु के दो अवयव हैं- सीसा तथा टिन

11. ऐसी कौनसी धातुएँ हैं जिन्हें हथेली पर रखने पर पिघलने लगती है?

गैलियम तथा सीजियम, क्योंकि इनका गलनांक बहुत कम होता है|

12. यशदलेपन या गैल्वेनीकरण किसे कहते हैं?

लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उन पर जस्ते (जिंक) की एक पतली परत चढ़ाई जाती है| इस प्रक्रिया को यशदलेपन कहते हैं|

13. मैग्नीशियम तथा सल्फर को दहन करने पर क्या होगा? प्राप्त यौगिक का पानी में विलयन बनाकर लिटमस से जाँच करके बताइए कि कौनसा तत्व अम्लीय आँक्साइड बनाता है तथा कौनसा क्षारीय| समीकरण सहित समझाइए|

(1) मैग्नीशियम को वायु में गर्म करने पर चमकदार श्वेत ज्वाला के साथ दहन होकर मैग्नीशियम आँक्साइड बनता है जो कि क्षारीय होता है क्योंकि Mg धातु है तथा धातुओं के आँक्साइड सामान्यत: क्षारीय होते हैं|इस आँक्साइड को पानी में घोलने पर मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड बनता है जो लाल लिटमस को नीला करता है| 

    2Mg(s) + O2(g) = 2MgO(s)

     MgO + H2O = Mg(OH)2 

(2) सल्फर भी वायु से क्रिया करके सल्फर डाइआँक्साइड बनाता है जो कि अम्लीय है क्योंकि सल्फर अधातु है| इस आँक्साइड को पानी में घोलने पर अम्लीय विलयन बनेगा जो नीले लिटमस को लाल कर देता है|  जैसे-

S(s) + O2(g) = SO2(g)

14. काँपर (Cu) तथा ऐलुमिनियम(Al) को वायु की उपस्थिति में गर्म करने पर क्या होगा? प्राप्त आँक्साइड़ों की प्रकृति कैसी है? अभिक्रिया सहित बताइए| क्या धातु आँक्साइड जल में घुलनशील होते हैं?

जब काँपर को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो यह आँक्सीजन के साथ क्रिया करके काले रंग का काँपर(II)आँक्साइड बनाता है|  

     2Cu + O2 = 2CuO (काँपर(II)आँक्साइड) 

इसी प्रकार ऐलुमिनियम, ऐलुमिनियम आँक्साइड बनता है|

     4Al + 3O2 = 2Al2O3 

धातु आँक्साइड सामान्यत: क्षारीय होते है लेकिन ऐलुमिनियम आँक्साइड, जिंक आँक्साइड जैसे कुछ धातु अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों व्यवहार प्रदर्शित करते हैं| ऐसे धातु आँक्साइड जो अम्ल तथा क्षारक दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करते हैं, उभयधर्मी आँक्साइड कहलाते हैं| अम्ल तथा क्षारक के साथ ऐलुमिनियम आँक्साइड निम्न प्रकार से अभिक्रिया करता है-

     Al2O3 + 6HCl = 2AlCl3 + 3H2O 

     Al2O3 + 2NaOH = 2NaAlO2 + H2O 

अधिकांश धातुएँ आँक्साइड जल में अघुलनशील हैं लेकिन इनमे से कुछ आँक्साइड जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं| सोडियम आँक्साइड एवं पोटेशियम आँक्साइड निम्न प्रकार से जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं- 

     Na2O(s) + H2O(l) = 2NaOH(aq)

     K2O(s) + H2O =  2KOH(aq)

15. लोहे का शुद्ध अवस्था में उपयोग नहीं किया जाता| क्यों?

लोहे को शुद्ध अवस्था में उपयोग में नहीं लिया जाता क्योंकि शुद्ध लोहा अत्यन्त नर्म होता है एवं गर्म करने पर सुगमतापूर्वक खिंच जाता है|

हमें उम्मीद है कि आपको हमारी यह Post पसंद आई होगी। आप यह Post social media sites वह अपने दोस्तों के साथ share & subscribe कर हमारी इस मुहिम का हिस्सा बनये, हमारी यह मुहिम सिर्फ आपको सफल बनाने की नहीं बल्कि पूरे india को सफल बनाने की है।

देश के लिए हमारा साथ दीजिए।

Thankyou india.

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने